Saturday, December 6, 2025

Hisaab Maang Rahi thi

 वो मुझसे मेरी मोहब्बत का जवाब मांग रही थी 

पगली, बारिश से बूंदों का हिसाब मांग रही थी


जिनसे सीखा है आम की कैरियों नै लटकना 

उन झुमकों की लटक को वो खराब मान रही थी


आदतन आज फिर खाली हाथ चली आई

मेरी कब्र पर, वो पड़ोसी से ग़ुलाब मांग रही थी


समंदर की कोख से बनाया है बादलों को जिसने

वो धरती, फिर आसमानों से सहाब मांग रही थी


आंखों से पीने पिलाने का अपना और मजा है

एक रोज साक़ी खुद मुझसे शराब मांग रही थी

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